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Saturday, 31 May 2014

"Strange Fruit" (Hindi)



Rupa Subramanya 

7 अगस्त 1930 को थॉमस शिप्प और अब्राम स्मिथ नामक दो युवा अफ्रीकी अमेरिकियों की इंडियाना राज्य के मैरियन शहर के बीचोबीच भीड़ द्वारा बर्बरतापूर्वक तरीके से हत्या कर दी गई | इसके एक दिन पहले ही ये दोनों लोग सशस्त्र डकैती, गोरे कारखाना मालिक की हत्या और उसकी प्रेमिका के साथ बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किये गए थे, इनके साथ ही एक तीसरे व्यक्ति, 16 वर्षीय जेम्स कैमरॉन को भी गिरफ्तार किया था |
लेकिन मैरियन शहर के "अच्छे नागरिक" न्याय को अपना काम करने की अनुमति देने को तैयार नहीं थे | (ये मामला आज तक नहीं सुलझा है)| शहर के हजारों गोरे लोगों ने हथौड़ो और लोहे की रॉड के साथ जेल पर हमला कर दिया और थॉमस शिप्प और अब्राम स्मिथ का अपहरण करके शहर के बीचोबीच बर्बरतापूर्वक तरीके से मार डाला और लाश को पेड़ से लटका दिया | कैमरॉन भाग्यशाली रहे और वहां से भागने में सफ़ल रहे | बाद में कैमरॉन  ने "A time of terror" (दहशत का समय) नाम की एक किताब लिखी, जिसमें उन्होंने इस दर्दनाक घटना का आँखों देखा हाल बयान किया |
अमेरिकी नस्लवाद के इतिहास में यह पहली ऐसी घटना नहीं थी, बल्कि काले अमरीकियों की बर्बरतापूर्ण हत्या आम बात थी, यहाँ तक कि अपराधी गर्व के साथ इसके पोस्टकार्ड फोटो बेचते थे | एक स्थानीय फोटोग्राफर, लॉरेंस बिटलर ने इस घटना की भी तस्वीर ली और इसकी हजारों कॉपी बनाई और बेचीं गई, इन्ही में से एक कॉपी सामाजिक कार्यकर्ता और कवि हाबिल मोरिपॉल के हाथ लगी | इस तसवीर को देख कर वो कई दिनों तक विचलित रहे और अंततः एक विरोध गीत "Strange Fruit"  लिखने के लिए प्रेरित हुए | (नोट – यहाँ “Strange Fruit” एक रूपक है और इसे पेड़ से लटके शव के लिए प्रयोग किया गया है)
1939 में पहली बार इस गीत को महान जैज गायक बिली होलीडे ने अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड किया. उन दिनों ये गीत इतना विवादास्पद था की बिली ने इसे अपने नियमित रिकॉर्ड लेबल से न रिकॉर्ड करके बल्कि कमोडोर रिकार्ड के लिए रिकॉर्ड किया | दशकों बाद यह गीत अमेरिका में नागरिक अधिकार आन्दोलनकारियों के लिए एक समूहगान के रूप में प्रसिद्ध हुआ, और आन्दोलनकारियों की भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम बना |
आज भी लॉरेंस बिटलर की तस्वीर और उससे प्रेरित यह गीत दोनों दोनों अमेरिकी नस्लवाद कट्टरता के खिलाफ सबसे मार्मिक और सशक्त विरोध प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं |
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उत्तर प्रदेश में बदायूं जिले के एक छोटे से गांव में 27 मई 2014 की शाम को पिछड़ी जाति की दो किशोर लड़कियां, जोकि आपस में चचेरी बहने थीं , अपने घर से बाहर शौच के लिए गईं, क्योंकि लाखों भारतीयों की तरह उनके घर पर भी कोई शौचालय नहीं था. जब वो काफी देर तक ना लौटीं तब उनके घरवाले और पड़ोसियों ने चिंतित हो के उन्हें खोजना शुरू किया |
अगले दिन सुबह दोनों लड़कियों की लाश एक पेड़ से लटकी पायी गई, और रिपोर्ट के मुताबिक दोनों लड़कियों को सामूहिक बलात्कार के बाद फांसी पर लटका कर हत्या कर दी गई थी |
काले अफ़्रीकी-अमेरिकी लोगो की नस्लवादी हत्याओं की तरह ही भारत में महिलाओं और लड़कियों का बलात्कार और हत्या अक्सर होने वाली घटना है | महिला उत्पीड़न की समस्या दलित और पिछड़ी जाति की महिलाओं के साथ और भी भयावह है | इन मामलों में सामान्यतः भारतीय अखबारों की सुर्खियाँ कुछ इस तरह से होती हैं - "दो दलित महिलाओं का सामूहिक बलात्कार और हत्या” , " दो नाबालिगों के साथ बलात्कार " आदि- आदि, और इसके साथ एक डरी हुई महिला का खुद को बचाने की कोशिश में दोनों हाथ ऊपर किये हुए स्केच होता है | इस तरह की त्रासदी प्रायः कुछ tweets और १-२ कॉलम के बाद भुला दी जाती हैं | 
बदायूं त्रासदी बाकी त्रासदियों से अगल है, क्योंकि यहाँ पर किसी व्यक्ति ने एक ऐसी तसवीर ली हैं जिसने जनमानस और बुद्धजीवी वर्ग को अन्दर तक झकझोर के रख दिया है | इस तसवीर में दोनों लड़कियों की लाश पेड़ से लटकी हुई है और हताश, किम्कर्तव्यविमूढ़ और व्यथित गाँव वाले उसे चारो ओर घेरा बना के देख रहे हैं | हालांकि, लॉरेंस की तस्वीर में जहाँ गोरे अमेरिकी, काले लोगो की बर्बरतापूर्ण हत्या का जश्न मना रहे हैं, वही बदायूं के ग्रामीण सामूहिक बलात्कार और हत्या के खिलाफ़ पुलिस निष्क्रियता और तथाकथित मिलीभगत का विरोध कर रहे हैं |
भारतीय कानून के तहत ऐसी तस्वीर का प्रचार प्रसार करना एक अपराध हो सकता हैं, इसके बावजूद  दैनिक भास्कर ने इसे छापा है, और सोशल मीडिया में यह तस्वीर व्यापक रूप से साझा की गई है |
कई लोगो ने चिंता जताई है की इस तस्वीर को प्रकाशित करने के लिए लड़कियों के परिवार वालों की अनुमति नहीं ली गई है, परन्तु ये तस्वीर पहले से ही पब्लिक में है और बहुत से लोगो के इसे जाने अनजाने में देखने की सम्भावना है |
क्या यह त्रासदी भारत की शोषित समुदाय की महिलाओं / बच्चियों के खिलाफ हर रोज होने वाली क्रूरता और हिंसा के लिए " Strange Fruit" जैसी घटना हो सकती  है? 
अगर रिपोर्ट सही है कि गाँववालों ने शांतिपूर्ण तरीके से पेड़ के चारों ओर घेरा बना के इस त्रासदी के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया और तब तक वहां से हटने से मना कर दिया जबतक पुलिस ने अपराधियों के खिलाफ कार्यवाई नहीं शुरू कर दी तब यह बात इंगित करती है की गाँव वाले शांतिपूर्ण विरोध और इसके ग्राफ़िक चित्रण की शक्ति से निश्चित रूप से परिचित थे |

मन को हिलाने और विचलित करने वाली तस्वीर पर लोगों की प्रतिक्रियायें? 
कुछ लोग इस बात से नाराज थे कि ये तस्वीर बिना किसी चेतावनी के साझा की गई है, जबकि कुछ लोगों का कहना था कि इन तस्वीरों को साझा करके लड़कियों और उनके परिवार वालों की गरिमा और निजता का उल्लंघन किया गया है |
जबकि कुछ लोगो ने मुझे बताया की इस तस्वीर ने उन्हें इतना व्यथित कर दिया की वो रात को सो नहीं सके और ऐसा उन्होंने आजतक फिल्मों के अलावा कहीं नहीं देखा था |
संभवतः बदायूं त्रासदी की यह तस्वीर हम सब की अंतरात्मा को झकझोरेगी और पुलिस और नेताओं को महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में उदासीनता त्यागने के लिए विवश करेगी |
बदायूं त्रासदी भी 16 दिसंबर त्रासदी जैसी है जबकि दिल्ली में एक युवा महिला की सामूहिक बलात्कार और अंततः मौत के बाद लोगो में उपजे आक्रोश ने पूरे देश को हिला के रख दिया था, व्यापक रोषपूर्ण प्रदर्शन हुए, बलात्कार के खिलाफ़ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक बहस हुई और ऑनलाइन अभियान चलाये गए, और अंत में एक महत्वपूर्ण नया बलात्कार कानून पारित हुआ |
दिल्ली बलात्कार पीड़ित की कोई फोटो नहीं थी, लेकिन घटना का विस्तृत विवरण अविश्वसनीय रूप से ग्राफ़िक और भयानक था, और चूकिं यह यह घटना शहर में हुई थी ना की किसी दूरदराज के इलाके में, इसलिए इसने हमारे अंतःकरण को इसे नियमित बलात्कार और हिंसा की घटना ना मानने के लिए विवश कर दिया और यह त्रासदी हम सबके आक्रोश का कारण बन सकी |

बदायूं त्रासदी एक दूरदराज के इलाके में हुई है, और उत्तर प्रदेश पहले से ही अराजकता और लचर कानून व्यस्था के लिए कुख्यात है, ये संभव है की कुछ दिनों में लोग इस घटना को भूलने लगें | लेकिन अगर ये “अवैध” तस्वीर काफी लोगो की अंतरात्मा को व्यथित करे और यह सोचने को मजबूर करे कि इस देश में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ इतनी क्रूरता क्यों है तब इस बात की व्यापक सम्भावना है की हममें से कोई “Strange Fruit” जैसी कोई कविता रचे और जो अंततः सामाजिक चेतना को जगाने मे और भारतीय नारी को पूरी गरिमा और सम्मान के साथ सामान अधिकार देने वाले जन आन्दोलन का गान बने |

Translated by Uma Nath Tripathi

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